जिंदगी ठहरी हुईगीत : नागेश पांडेय संजय चल रही है श्वांस , लेकिन जिंदगी ठहरी हुई है . अधूरे-आधे मिलन की साक्षी हैं वीथिकाएँ . स्वयं के ही व्याकरण पर बहुत रोती हैं प्रथाएं. नेह पर अनुबंधनों की पताका फहरी हुई है . छा गईं उन्मुक्त नभ पर , गर्विता काली घटाएँ . चीत्कारों के नगर में खो गईं अंतर व्यथाएं . वेदना गूंगी हुई ,संवेदना बहरी हुई है . नियति के निष्ठुर लुटेरे , क्या पता , कब लूट जाएँ . क्षीण स्वर हृत-तंत्रिका के भँवर में कब छूट जाएँ . अन्तत: है डूबना , जीवन-नदी गहरी हुई है . |
बुधवार, 9 मार्च 2011
जिंदगी ठहरी हुई
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wah wah bouth he aache shabad hai aapke is post mein dear...
जवाब देंहटाएंvisit my blog plz
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वेदना गूंगी हुई ,संवेदना बहरी हुई है .
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी .... सुंदर रचना ...
आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंजिंदगी के सफर की खुबसुरत प्रस्तुति....अभाव और लगाव का विशेष समन्वय।
जवाब देंहटाएंअधूरे-आधे मिलन की
जवाब देंहटाएंसाक्षी हैं वीथिकाएँ .
स्वयं के ही व्याकरण पर
बहुत रोती हैं प्रथाएं.... bahut badhiyaa
सत्यम जी एवं रश्मि जी, धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति
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